माउंटेन मैन, एक ऐसा नाम जो साहसी और दृढ़ इच्छाशक्ति रखने वाला तथा पहाड़ का सीना चीर कर इतिहास रचने वाला नाम है। एक छोटे से गावं में न कोई आधुनिक संसाधन न कोई मशीन बल्कि छेनी और हथौड़ी से पहाड़ की छाती पर चोट करके अपनी जिद और दीवानगी में एक शख्स ने विशालकाय पर्वत को दो भागों में बांट दिया। जिसको दुनिया माउंटेनमैन उर्फ दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) के नाम से जानती है।
दशरथ मांझी - Dashrath Manjhi |
नाम
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दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi)
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जन्म
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1934 गहलौर, बिहार, भारत
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अन्य नाम
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माउंटेन मैन ( Mountain Man)
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प्रसिद्धि का कारण
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अकेले ही पहाड़ को काटकर सड़क का निर्माण करना
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मृत्यु
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17 अगस्त 2007 अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली
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मृत्यु का कारण
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पित्ताशय कैंसर
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विहार के गया जिले के शहर से दूर वीरान पहाड़ियों के बाद एक गावं है गहलौर, जो कि अत्री ब्लाक में पड़ता है। यह गावं पहाड़ी से घिरे होने कारण यहाँ का सबसे नजदीकी शहर वजीरगंज है जोकि अत्री से करीब 55 किमी दूर है। Dashrath Manjhi (दशरथ मांझी) का जन्म इसी गहलौर गाँव में सन 1934 में हुआ था। इनका बचपन बहुत ही कठिनाई भरा था। बचपन में ही इनकी शादी फगुनिया(फाल्गुनी देवी) से हो गई थी।
दशरथ मांझी को कुछ दिनो तक बँधुआ मजदूर के रूप में भी काम करना पड़ा था। बचपन में ही मांझी अपने घर से भागकर धनबाद आ गए और एक कोयले की खदान में कम करने लगे। लेकिन Dashrath Manjhi (दशरथ मांझी) को शुरू से ही अपने दम पर कुछ करने का जूनून था कुछ दिन बाद Dashrath Manjhi (दशरथ मांझी) अपने गाँव गहलौर लौटने का विचार किया उन्होंने सोचा था की गाँव में सब कुछ बदल गया होगा पर लौटने के बाद उन्होंने देखा की गाँव जैसे पहले था वैसे आज भी है। कुछ भी नहीं बदला सब कुछ वैसा का वैसा था।
Dashrath Manjhi (दशरथ मांझी) अपनी पत्नी से मिलने अपने ससुराल गए और जैसे तैसे बचपन की शादी प्यार में बदल गयी। Dashrath Manjhi (दशरथ मांझी) और फगुनिया(फाल्गुनी देवी) एक साथ रहने लगे। कुछ समय बाद उनको एक बेटा हुआ और फिर उनकी संघर्ष भरी जिन्दगी हंसी ख़ुशी बीतने लगी।
Dashrath Manjhi (दशरथ मांझी) एक दैनिक मजदुर थे और उन्हें जहाँ भी काम मिलता करने जाते थे। उन दिनों उनके गाँव में न ही विजली और न पानी था, ऐसी छोटी छोटी जरूरतों के लिए लोंगो को अक्सर पहाड़ी पार करके या पहाड़ी का चक्कर लगाकर जाना पड़ता था। सन 1959 की बात है रोज की तरह उस दिन भी Dashrath Manjhi (दशरथ मांझी) पहाड़ी पर काम करने गए थे और उनकी पत्नी फगुनिया उनके लिए खाना लेकर जा रही थी, पैर फिसलने के कारण वह पहाड़ी पर गिर गई और गंभीर रूप से घायल हो गयी। तत्काल इलाज न होने के कारण उनकी पत्नी फगुनिया(फाल्गुनी देवी) की मौत हो गई।
Dashrath Manjhi (दशरथ मांझी) को लगा की अगर उनकी पत्नी का इलाज तुरंत अस्पताल ले जाकर किया गया होता तो उसकी जान बचाई जा सकती थी, पर उस पहाड़ के कारण ऐसा संभव नहीं था। यही बात उनके दिलो दिमाग में बैठ गई, और फिर उन्होंने उस पहाड़ की छाती को चीरने का संकल्प लिया। एक छेनी और हथौड़ी के सहारे रातों दिन की कड़ी मेहनत से 22 वर्षों में (1960-1982 तक ) अकेले ही 360 फिट लम्बा, 25 फिट गहरा, तथा 30 फिट चौड़ा रास्ता काटकर बना डाला। वजीरगंज और अत्री के 55 किमी की दुरी को अपनी लगन और कड़ी मेहनत से महज 15 किमी की दुरी में तब्दील कर दिया।
मांझी ने एक इंटरव्यूह में बताया कि,
“जब मैंने पहाड़ी तोड़ना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा लेकिन इसने मेरे निश्चय को और मजबूत किया।"
वार्ता में उन्होंने एक बात और कही की ,
"पहले-पहले गाँव वालों ने मुझपर ताने कसे लेकिन उनमें से कुछ ने मुझे खाना दे कर और औज़ार खरीदने में मेरी मदद कर सहायता भी की।"
Dashrath Manjhi (दशरथ मांझी) ‘मांझी द माउन्टेन मैन’ के रूप में पुरे विश्व में बिख्यात हैं. इनकी उपलब्धी को देखते हुए बिहार सरकार ने सन 2006 में सामाजिक के कार्यक्षेत्र में पद्मश्री अवार्ड हेतु उनके नाम का प्रस्ताव रखा। इनकी जीवन पर आधारित एक फिल्म Manjhi The Mountain Man 21 अगस्त 2015 को रिलीज हुई।
Mountain Man के रूप में विख्यात Dashrath Manjhi (दशरथ मांझी) पित्ताशय कैंसर की वीमारी से लड़ते हुए 73 साल की उम्र में,17 अगस्त 2007 को नई दिल्ली अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अपने जीवन की अंतिम साँस ली।
“अपने बुलंद हौसलों और खुद को जो कुछ आता था,
उसी के दम पर मैं मेहनत करता रहा।
संघर्ष के दिनों में मेरी मां कहा करती थीं कि
12 साल में तो घूरे के भी दिन फिर जाते हैं।
उनका यही मंत्र था कि अपनी धुन में लगे रहो।
बस, मैंने भी यही मंत्र जीवन में बांध रखा था
कि अपना काम करते रहो,
चीजें मिलें, न मिलें इसकी परवाह मत करो।
हर रात के बाद दिन तो आता ही है।”
उसी के दम पर मैं मेहनत करता रहा।
संघर्ष के दिनों में मेरी मां कहा करती थीं कि
12 साल में तो घूरे के भी दिन फिर जाते हैं।
उनका यही मंत्र था कि अपनी धुन में लगे रहो।
बस, मैंने भी यही मंत्र जीवन में बांध रखा था
कि अपना काम करते रहो,
चीजें मिलें, न मिलें इसकी परवाह मत करो।
हर रात के बाद दिन तो आता ही है।”
दशरथ मांझी (फिल्म: Manjhi The Mountain Man)
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बुलंद हौंसले और दीवानगी से रचा इतिहास - दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi)
Reviewed by Ramesh 'Manjhi'
on
4:53 pm
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