लोहे की तराजू / Lohe ka Tarajoo (a motivational story)

लोहे की तराजू / Lohe ka Tarajoo (a motivational story)

रामनगर में लक्खीमल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसका व्यापर दूर देशों तक फैला हुआ था। धन की उसके पास कोई कमी न थी। धनी होने के कारण समाज में उसका सम्मान भी बहुत था।

लोहे की तराजू / Lohe ka Tarajoo (a motivational story)
लोहे की तराजू / Lohe ka Tarajoo (a motivational story)

एक समय ऐसा आया जब लक्खीमल को व्यापार में बहुत हानि हुई। उसका व्यापार बंद हो गया ,आगे व्यापार करने की कोई सूरत न देख उसने विदेश जाकर धन कमाने हेतु कुछ करने का विचार किया। उसके पास पुरखों की एक बड़ी भारी भरकम तराजू थी। उसे उसने अपनी पहचान के एक सेठ को देकर कहा, ‘’सेठ जी, मैं विदेश जा रहा हूँ। मेरे पास एक तराजू है, मैं चाहता हूँ कि इसे आप मेरी धरोहर मानकर अपने यहाँ रख लें। जब मै वापस लौट आऊंगा, तो आपसे ले लूँगा।’’

इसके बाद वह विदेश चला गया।

कई वर्ष बाद जब लक्खीमल वापस लौटा, तो वह सेठ जी से अपनी तराजू वापस लेने के लिए गया। वह बोला, ‘’सेठ जी, आपने बहुत दया की कि मेरी तराजू इतने दिनों तक संभाल कर रखी। कृपा करके  अब वह तराजू मझे दे दीजिये।’’

सेठ जी की इच्छा तराजू लौटने की नहीं थी। वे बोले, ‘’भाई लक्खीमल, क्या बताऊँ, गोदाम में चूहे भरे पड़े हैं। बड़ा नुकसान करते हैं, तुम्हारी तराजू वहीँ रखी हुई थी। चूहों ने उसे भी कुतर डाला।’’

सेठ जी की बात सुनकर लक्खीमल हैरान रह गया। इतनी भरकम तरजू को कुतरना चूहों के बस की बात नहीं है। साफ था  की सेठ जी की नियत ख़राब हो गयी थी। फिर भी वह मुस्कुराते हुए बोला, ‘’कोई बात नहीं, भला इसमें आप क्या कर सकते हैं।’’ सेठ जी को लगा की लक्खीमल ने उसकी बात का विश्वास कर लिया है।

अब लक्खीमल ने कहा, ‘’सेठ जी, नदी तट पर अनुष्ठान करने के लिए पंडित जी को भेजा है। मुझे बाजार से कुछ सामान लाना है। यदि आप अपने पुत्र को मेरे साथ भेज दें, तो बाज़ार से सामान लाने में मुझे सहयोग मिलेगा।“

“क्यों नहीं, क्यों नहीं,’’सेठ जी भी फीकी-सी हंसी हँसते हुए बोले। उन्होंने अपने पुत्र को आवाज़ लगाई, ‘’जगदेव, अरे ओ जगदेव ! जा, ज़रा चाचाजी के साथ बाज़ार चला जा ।’’

लक्खीमल के साथ जगदेव बाज़ार के लिए चल दिया । मार्ग में मिठाई की दुकान थी । लक्खीमल ने जगदेव से पूंछा, ‘’जगदेव, मिठाई खाओगे ?’’जगदेव ने मना कर दिया परन्तु  लक्खीमल नहीं माना और दिखावे का प्रेम दर्शाते हुए जगदेव के लिए पेडे लिए । दोनों एक पेड़ के नीचे बैठकर पेड़े खाने लगे ।

पेड़े खाते-खाते लक्खीमल ने जगदेव से कहा, ‘’जगदेव, विजय नगर के राजा के पास एक सोने की कुर्सी है वह तौलकर उसका वजन जानना चाहता है । परन्तु इतनी बड़ी तराजू का प्रबंध नहीं हो पा रहा है जो सोने की कुर्सी को तौलने योग्य तराजू लेकर आएगा, उसे मुंह माँगा पुरस्कार दिया जायेगा ।’’ ‘’सच?’’ जगदेव ने बड़ी-बड़ी आँखे निकाल कर उसकी आँखों में आँखे डालकर रहस्यमई मुस्कान के साथ कहा । ‘’चाचा जी, इतनी बड़ी तराजू तो हमारे गोदाम में रखी है,’’ वह बोला ।

‘’नहीं, नहीं भला तुम्हारे गोदाम में कहाँ से तराजू आयेगी ?’’

‘’मै सच कह रहा हूँ चाचा जी ! यकीन न हो तो मेरे साथ चलो ।’’

‘’चलो, लेकिन किसी को  पता नहीं चलना चाहिए, मै चाहता हूँ की पुरस्कार तुम्हे ही मिले ।’’ ‘’जगदेव, तुम राजा से पुरस्कार में क्या लोगे ?’’ जगदेव ने मुस्कुराते हुए कहा, वास्तव में लक्खीमल ने जगदेव से झूंठ बोला था कि विजय नगर के राजा को बड़ी तराजू की आवश्यकता है । वह जगदेव से यह पता लगाना चाहता था कि क्या उसकी दी हुई बड़ी तराजू उनके गोदाम में कंही रखी हुई है । जगदेव तराजू रखे होने की बात स्वीकार कर चुका था । जगदेव लक्खीमल को चोर रास्ते से गोदाम में उस स्थान पर ले गया, जहाँ तराजू रखी हुई थी ।  लक्खीमल को वहां अपनी तराजू देखकर बड़ा सन्तोष हुआ । वह जगदेव से बोला, ‘’अब अपने पिता को बुला लाओ मै चाहता हूँ कि पुरस्कार वाली बात उन्हें भी बता दी जाये । लेकिन तुम उन्हें कुछ बताना मत, किसी भी बहाने से उन्हें यहाँ बुलाना है ।’’

जगदेव गया और कुछ ही देर में सेठ को साथ  लेकर लौटा । सेठ जी लक्खीमल को तराजू के पास देखकर घबरा गए और गिड़गिड़ाकर बोले, ‘’लक्खीमल मैंने तो मज़ाक में कहा था कि तराजू चूहे कुतर गए हैं । मै तो तुम्हे इसे लौटने ही वाला था ।’’

लक्खीमल ने एक गाड़ी मंगवाई और भारी भरकम तराजू को गाड़ी में रखवाकर घर लौट आया । जाते-जाते लक्खीमल ने ‘’सेठ जी, मैंने तुम जैसा कपटी आदमी नहीं देखा ।’’

इस प्रकार सूझबूझ से लक्खीमल ने कपटी सेठ से अपनी तराजू प्राप्त की ।......

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