‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी एक नजर में | Lakshmi ka svagat ekanki

‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी एक नजर में | Lakshmi ka svagat ekanki 

उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’ द्वारा लिखित ‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी एक सामाजिक समस्या – प्रधान एकांकी है। इस एकांकी में एकांकीकार ने दहेज़ के लोभी उन माता-पिता का चित्र अंकित किया है। जो दहेज़ की लम्बी-चौड़ी रकम प्राप्त करने के लालच में अपने बेटे रोशन का पुनर्विवाह उसकी पूर्व-पत्नी के निधन के चौथे दिन ही कर देना चाहते हैं। इससे स्पस्ट है कि आज का मानव धन के कारण कितना स्वार्थी, नीच एवं हृदयहीन हो सकता है।
‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी एक नजर में | Lakshmi ka svagat ekanki
‘लक्ष्मी का स्वागत’ एकांकी एक नजर में | Lakshmi ka svagat ekanki 

एकांकी का प्रमुख पात्र रोशनलाल शिक्षित होने के साथ-साथ ही एक संवेदनशील युवक भी है। उसके लिए उसकी पत्नी कोई ऐसी वस्तु नहीं थी, जिसके खो जाने पर उसे भुला दिया जाये, वरना वह एक ऐसी इन्सान थी, जिसके मृत्यु के दु;ख को भुला पाना चौथे दिन ही सम्भव न था। रोशन किसी भी प्रकार का पुनर्विवाह करने के पक्ष में नहीं था।

दूसरी ओर उसके माता पिता जो दहेज़ के लालच में उसका सीघ्र विवाह कर देना चाहते थे, एक ब्यापारी उसके लिए रिश्ता लेकर आये थे। तब उन्हें एक माह का समय दिया गया था। एक माह के बाद वे पुनः रोशन के घर रिश्ता लेकर आते है। इस समय रोशन का एक मात्र पुत्र अरुण अत्यधिक बीमार है, वह मरणासन्न अवस्था में है। किन्तु रोशन की माँ घर आयी लक्ष्मी का अनादर नहीं कर सकी। क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि रिश्ता लाने वाला कोई ऐसा वैसा नहीं कई हजारो का लेन-देन करने वाला है।

पत्नी की मृत्यु के बाद रोशन का पूरा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित था। बच्चे को देखकर वह पत्नी के गम को पी चुका है, अतः वह विवाह का विरोध करता है। लेकिन उसकी माँ उसके मित्र सुरेन्द्र से विवाह हेतु अपने पुत्र को समझाने का असफल प्रयास करती है। रोशन के पिता क्रोधित होकर सगुन लेने की बात कहते है। इसी बीच रोशन के पुत्र अरुण की दशा अचानक बिगड़ जाती है तथा उसकी मृत्यु हो जाती है, जिससे रोशन बंद कमरे में अपने को अकेला अनुभव करता है तभी कमरे के बाहर से रोशन के पिता अपनी पत्नी को सगुन की बधाई देते हैं।

तभी रोशन का मित्र सुरेन्द्र कहता है – माँ जी दाने लाओ, दिए का परबंध करो अरुण इस संसार में नहीं रहा। रोशन पुत्र के शव को लेकर कमरे से निकलता है माता-पिता आश्चर्य की मुद्रा में देखते हुए रह जाते है। कि लक्ष्मी का स्वागत करो।

एकांकी का कथानक भावप्रवण, मर्मस्पर्शी तथा विचारोत्तेजक है। कथ्य रंग-मंच और रेडियो- रूपक दोनों ही बहुत अनुकूल है। एकांकी सहज पाठकों को अच्छा करने वाला है। वह भाषा शैली, चित्रांकन एवं उद्देश्य सभी से अच्छा और सफल है। आजकल मध्यम वर्ग किस प्रकार दहेज़ के दानव का शिकार होता जा रहा है। यही बताना इस एकांकी का उद्देश्य है। लोग धन के लिए लालायित होते जा रहें हैं।

एकांकी में पात्र घर की लक्ष्मी की चिंता न करके आने वाली लक्ष्मी का स्वागत करते है, पुत्र की बीमार एवं आहात भावनाओ की भी उन्हें चिंता नहीं थी। आज का हमारा मध्यम वर्गीय समाज इसी तरह की बीमारी से ग्रस्त है। यह विषय सोचने और समझने का है।

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