रास्ते का पत्थर (RASTE KA PATHAR) A Moral Story In Hindi
एक राजा था, वह अपनी प्रजा से बहुत प्यार करता था। राजा प्रजा की भलाई का सदा ध्यान रखता था। राजा दयालु और न्याय प्रिय भी था। किसी के साथ अन्याय न हो सके, इसके लिए वह हमेशा वेश बदलकर अपने राज्य में घूमा करता था।
रास्ते का पत्थर (RASTE KA PATHAR) A Moral Story In Hindi
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एक दिन प्रात: काल राजा भ्रमण के लिए अपने राज्य के एक मार्ग पर निकला था, अचानक उसे ठोकर लगीं और वह मुंह के बल गिर पड़ा। उसने देखा रास्ते में एक पत्थर पड़ा है, राजा नें सोचा ना जानें यह पत्थर कितनें दिन से यहाँ पड़ा है देखता हूँ इसे कौन हटाता है, और राजा पास के ही एक पेड़ के पीछे छिप गया।
कुछ ही देर बाद राजा को एक किसान दिखायी दिया। वह अपनें हल बैलों के साथ उसी रास्ते पर आ रहा था। किसान नें पत्थर देखा और अपनें बैलों को दूसरी ओर मोड़कर वहां से निकल गया।
किसान के जाने के बाद एक ग्वाला घड़े में दूध लेकर उधर से निकला। पत्थर की ओर उसका ध्यान नहीं गया और वह ठोकर खाकर गिर पड़ा। ग्वाले के घुटने पर चोट लग गई और उसका सारा दूध जमीन पर गिर गया। वह कराहता हुआ उठा और बडबडाने लगा। रास्ते में इतना बड़ा पत्थर पड़ा हुआ है और कोई इसे हटाता तक नहीं। मेरा सारा दूध जमीन पर गिर गया अब आज मे अपने ग्राहकों को क्या दूंगा।
ग्वाला लंगड़ाता हुआ और पत्थर को कोसता हुआ अपने रास्ते चला गया, मगर उसने पत्थर हटाने का कोई प्रयास नहीं किया, अचानक तभी राजा को किसी के घोड़े की टॉप सुनाई दी।
देखते ही देखते घोडा पत्थर के पास आ गया। राजा ने देखा, घोड़े पर एक सिपाही बैठा था। वह मस्ती से गाता आ रहा था। अचानक घोड़े को पत्थर से ठोकर लग गयी। सिपाही गिरते- गिरते बचा। उसने नीचे देखा और चिल्लाकर बोला, "मै कई दिन से इस पत्थर को यंहा पड़ा देख रहा हूँ, पर कोई इसे हटाता ही नहीं। कितने आलसी हैं यंहा के लोग"। सिपाही ने तो दूसरो को आलसी बताया परन्तु स्वयं पत्थर हटाने के बारे में अपने मन में कोई बिचार ही नहीं किया।
इसके बाद एक बूढा आदमी अपने सर पर फलो की टोकरी रखे हुए उधर से निकला और पत्थर से ठोकर खाकर गिर पड़ा। उसके सारे फल दूर – दूर तक रास्ते में बिखर गए। कुछ दूर पर खड़ा एक छोटा सा लड़का यह सब देख रहा था वह दौड़ता हुआ आया और बूढ़े को उठाते हुए बोला,"बाबा कंही चोट तो नहीं लगी।"
"नहीं बेटा पर मेरे फल ........’’ बूढ़े ने कहा।
"आप घबराइए नहीं, मै अभी आपके सारे फल उठाकर टोकरी में रख देता हूँ ।" लड़के ने कहा।
उसने सभी फल उठाकर उस बूढ़े की टोकरी में डाल दिया। बूढा व्यक्ति बालक को आशिर्वाद देता हुआ चला गया। लड़के ने इधर – उधर देखा और स्वयं रास्ते से पत्थर को हटाने में जुट गया। लड़के ने पत्थर हटाने का एक बार पुन: प्रयत्न किया, पर इस बार पत्थर हिला तक नहीं। उसने सहायता के लिए इधर – उधर देखा, मगर किसी को न पाकर वह फिर पत्थर को हटाने का प्रयत्न करने लगा।
अचानक पत्थर हिल गया। लड़के ने देखा की एक आदमी उसकी सहायता कर रहा है। वह राजा ही था दोनों ने मिलकर जोर लगाया और पत्थर को रास्ते से हटाकर एक ओर कर दिया।
राजा ने लड़के से पूंछा, "बेटा , तुम कौन हो ?"
लड़के ने कहा , "मै गांव के मुखिया का बेटा हूँ ।"
अगले दिन राजा के आदमी गांव पहुचे और उन्होंने सबके सामने मुखिया और उनके बेटे की बहुत प्रशंसा की। मुखिया और उनके बेटे को राजा ने अपने दरबार में बुलाकर पुरस्कार देकर सम्मानित किया। सभी गांव वाले अपने आप पर गर्व कर रहे थे की उनके गांव के लड़के को राजा ने पुरस्कृत किया।
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रास्ते का पत्थर (RASTE KA PATHAR) A Moral Story In Hindi
Reviewed by Ramesh 'Manjhi'
on
4:33 pm
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