रीढ़ की हड्डी एकांकी एक नजर में | Ridh ki haddi Ekanki

रीढ़ की हड्डी एकांकी एक नजर में | Ridh ki haddi Ekanki

‘रीढ़ की हड्डी’ श्री जगदीशचंद्र माथुर द्वारा  लिखित भावपूर्ण सामजिक एकांकी है। इस एकांकी में उमा नामक एक ग्रेजुएट कन्या के विवाह के प्रस्ताव की भूमिका हुए नारी के नए ब्यक्तिगत का चित्रण किया गया है। उमा के पिता रामस्वरूप अपनी कन्या के विवाह के लिए गोपाल प्रसाद तथा उनके पुत्र शंकर को आमंत्रित करते है। पिता-पुत्र कन्या देखने के लिए रामस्वरूप के घर जाते है । आथित्य एयम इसमें अयोग्य वर उपरांत होती है और आदेशानुसार अपनी संगीत-कला का परिचय देती है ! इसमें अयोग्य वर कन्या को हीन सा देखा गया है !

Ridh ki haddi Ekanki
Ridh ki haddi Ekanki

इस एकांकी में उमा को सामान्य कन्या के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे कन्या के पिता की हीनभावना अभिब्य होती है।

शंकर के जीवन से उमा एक रूप से परिचित है। शंकर के पिता उमा से अनेक प्रश्न करते हैं, इस तरह वे उसके शील, सौम्य आदि की परीछा लेते है। इस परीछा का ढंग ऐसा था, जैसे कोई भेड.- बकरियां खरीदने से पहले उनकी जांच- परताल करता है । इससे उमा के आत्म सम्मान को चोट लगती है। उमा भेंड़-बकरियां की तरह बेजुबान नहीं है। उसका अपना सविचार था वह शंकर के पिता को ऐसा करारा उत्तर देती है, की वे खिशियाकर रह जाते है और वहा से भाग जाते है। यह एकांकी रामस्वरूप की मज़बूरी, गोपालप्रसाद की चालाकी तथा दहेज़-दानव के तिराहे पर है।

उमा आज की पढ़ी-लिखी का प्रतिनिधित्व करती है वर का पिता उन लोगों का प्रतिनिधित्व है। जो विवाह के नाम पर ब्यवसाय करते है। वर का कोई ब्यक्तित्व नहीं बन पाया है। वह रीढ़ विहीन ब्यक्ति की तरह दुर्बल और असंयमित है, सदाचार शील और सयंम ही जीवन की रीढ़ है जो शंकर के पास नहीं है। उमा उसकी कमजोरियों का उद्घाटन कर देती है तथा विद्रोह के स्वर में उन दोनों को करारा जबाब दे देती है इस विद्रोह का चित्रण एकांकी का मूल उद्देश्य है। एकांकीकार अपनी कृति में जिस इच्छा की पूर्ति देखना चाहता है ‘’वह उसका उद्देश्य होता है।’’

“रीढ़ की हड्डी ‘’ एकांकी में भारतीय समाज के सबसे अच्छी मनोदशा का चित्रण किया गया है। जिसे वह पढ़े लिखे बेटे के विवाह के समय ब्यक्त करता है। वह धन लोलुपता से ग्रस्त होकर दहेज़ को एक ब्यवसाय मानकर उसकी वसूली करने में अपनी वाक्पटुता और सयानेपन का परिचय देता है। समाज की इस कुरीति की ओर लेखक ने ध्यान रखा है की लडकियों को निर्जीव वस्तुओ की तरह विक्रय की वस्तु मानकर सौदा करना अत्यंत हीन निम्नकोटि का कर्म होता है। लेखक चाहता है की पढ़ी लिखी नारी और इस कुप्रथा का विरोध करे।

एकांकी में लेखक नें उमा के द्वारा इस कुप्रथा का विरोध कराया है। इस एकांकी में लेखक का उद्देश्य है नारी जाग्रति। वे चरित्रहीन लड़के को दिखा दे की वे लडको से कही अच्छी है तथा जांच परख का अधिकार उन्हें भी इतना ही होना चाहिये जितना लडको को है।

उमा के चरित्र की रचना में लेखक ने इस उद्देश्य की पूर्ति की है।

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