जादुई जूता, एक नैतिक कहानी / Magic Shoe, a moral story in hindi

जादुई जूता, एक नैतिक कहानी हिंदी में / Magic Shoe, a moral story in hindi

जादुई जूता, एक नैतिक कहानी हिंदी में / Magic Shoe, a moral story in hindi

बहुत दूर एक  शहर में संध्या नाम की एक सुन्दर सी लड़की थी। वह अपने मम्मी, पापा के काम में हमेशा हाथ बटाती थी। संध्या दूसरों की मदद करने में भी बहुत तेज थी। एक दिन की बात है, संध्या घर में अकेली बैठी थी। तभी उसे बाहर से किसी के रोने की आवाज सुनाई देती है। आवाज सुनकर संध्या बाहर निकलती है, उसनें देखा की बाहर एक बुढ़िया रो रही थी। संध्या ने उस बुढ़िया से पूछा, क्या हुआ दादी मां। बुढ़िया ने जबाब दिया, बेटा मुझे बहुत भूख  लगी है। मैनें कई दिनों से खाना नहीं खाया है। यहां से मेरा घर काफी दूर है। मै थक गई हूँ मेरा पैर दुख रहा है।’’ बुढिया की बात सुनकर संध्या बोलीरुको दादी मां मै आपके लिए अभी खाना लाती हूँ।’’
संध्या दौड़ती हुई घर के अन्दर जाती है। तथा दादी मां के लिए खाना लाती है। लो दादी मां खाना खा लो। दादी खाना लेकर खाने लगती है। बहुत,बहुत धन्यवाद बेटा, तुम बहुत अच्छी लड़की हो। तुम हमेशा सबकी मदद करती हो। खाना खानें के बाद बुढिया नें कहा और फिर बोली, इसलिए आज मै  तुम्हें एक उपहार देती हूँ। ये लो यह एक जादुई जूता है। जो तुम्हारे हर एक काम में मदद करेगा। और हाँ एक बात और अगर कोई तुम्हरे बारे में बुरा सोचेगा तो इस जादुई जूते के प्रभाव से उसका कद छोटा हो जाएगा। बुढ़िया की बात सुनकर संध्या बहुत खुश होती है, और खुशी-खुशी खेलने लग जाती है।

अगले दिन संध्या जब स्कूल जा रही थी, तभी जूते से आवाज आई। संध्या ऊपर देखो, किसी को हमारी मदद की जरूरत है। संध्या ऊपर की तरफ देखती है, वहां  एक चिड़िया का बच्चा अपने घोसले से गिरकर नीचे की एक डाल पर अटक गया था। और उसकी मां उसे निकाल नही पा रही है। संध्या अपनें जादुई जूते की मदद से उड़कर  चिड़िया के बच्चे को बचा लेती है। और उसके बाद  बच्चे को चिड़िया के घोसले में रख देती है। इस तरह संध्या हर छोटे बड़े कामो में लोंगो की मदद करनें लगी।

एक दिन की बात है, संध्या जादुई जुते iकी मदद से पानी के ऊपर चल कर एक बच्चे को बचा रही थी। तभी उसकी दोस्त रोली नें उसे देख लिया और आकर संध्या से पूंछा, संध्या तुम ये सब कैसे कर लेती हो। संध्या बोली, ये सब मेरी जादुई जूते का कमाल है। इसी के सहारे मै सबकी मदद करती हूँ।  संध्या की बात सुनकर रोली के मन में एक शरारती भरा ख्याल आया की,   क्यों ना हम इसका जादुई जूता चुरा लें।

ये सोच कर रोली अगले दिन संध्या के घर गई। जैसे ही रोली ने संध्या के जूते को हाँथ लगाया उसका कद छोटा हो गया। वह अपना छोटा कद देख घबरा गई और परेशान होकर रोने लगी। रोंनें की आवाज सुनकर संध्या अपने कमरे से बाहर आई और रोली को देखकर हैरान हो गईं। अरे ये क्या हो गया रोली तुम्हें अचानक  संध्या को दादी मां की बात याद आ गई। उन्होंने कहा था की, जो तुम्हारे बारे में बुरा सोचेगा उसका कद छोटा हो जायेगा। इसका मतलब जरूर रोली ने मेरे बारे कुछ बुरा सोच होगा। संध्या ने रोली से पूछा, रोली, तुमने मेरे बारे में कुछ बुरा सोचा था क्या। नही, नही ऐसी कोई बात नही है। मै तो तुमसे मिलने आई थी जैसे ही मैनें  तुम्हारे घर में कदम रखा वैसे ही मेरा कद छोटा हो गया। रोली नें रोते हुए जबाब दिया

संध्या नें कहा, मै तो सोचती थी, की तुम मेरी बहुत अच्छी दोस्त हो पर तुमने मेरे बारे में कुछ जरूर बुरा सोचा होगा, तभी तुम्हारा कद छोटा हो गया है। रोली जोर-जोर से रोने लगती है और हाथ जोड़कर संध्या से ठीक होनें का उपाय पूंछती है।  संध्या कहती है,इसका उपाय तो मुझे भी नहीं पता है फिर दोनो मिलकर भगवान से प्रार्थना करती हैं और दादी मां को याद करती है।

तभी वह बूढी दादी माँ वहां आती है।  और कहती है,रोली, तुम संध्या की बहुत अच्छी दोस्त हो, पर तुमनें संध्या की चीजें चुरानें की कोशिश की है इसलिए तुम्हारा कद छोटा हो गया है। रोली हाथ जोड़कर दादी से कहती है, दादी मां मुझे माफ कर दीजिए, आज के बाद मै किसी की कोई भी चीज नही  चुराउगी और न ही किसी के बारे में बुरा सोचूंगी। ठीक है रोली यह कहकर दादी उसे ठीक कर देती है। रोली  फिर  पहले  जैसे  हो  जाती है, यह देख संध्या बहुत खुश होती है और दादी मां को धन्यवाद देती है।

कहानी से सीख 

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की, हमें किसी के बारें में बुरा नहीं सोचना चाहिए और न ही किसी की कोई भी चीज चुरानी चाहिए






जादुई जूता, एक नैतिक कहानी / Magic Shoe, a moral story in hindi जादुई जूता, एक नैतिक कहानी / Magic Shoe, a moral story in hindi Reviewed by Ramesh 'Manjhi' on 4:54 pm Rating: 5

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