मुखिया का श्वार्थ, एक प्रेरणादायक कहानी | A Motivational Story
एक बहुत खूबसूरत जंगल था, जंगल में एक हंसों का जोड़ा रहता था। दोनों पति पत्नी बहुत ही प्रसन्नता पूर्वक एक साथ रहते थे। एक दिन दोनों भोजन की तलाश में उड़ते हुए एक वीरान सी जगह पर पहुँच गए। वहां दूर - दूर तक वीरान ही था न पानी नजर आ रहा था न ही कोई भोजन, बड़ी देर तक इधर उधर भटकने के बाद एक मैला कुचैला तालाब मिला। दोनों ने अपनी अपनी प्यास बुझायी और थोड़ा आराम करने लगे।
मुखिया का श्वार्थ, एक प्रेरणादायक कहानी | A Motivational Story |
हंस और हंसनी काफी देर से वीरान जगह पर भटक रहे थे, इसलिए उनकी ऑंखें थकान की वजह लग गयी और वो वहीँ सो गए। कुछ देर के बाद जब हंस की नींद खुली तो देखा की शाम हो चुकी थी सूर्य देवता अपनी सुनहरी किरणों को लालिमा युक्त करते हुए विश्राम के लिए जाने वाले थे।
हंस ने हंसनी को जगाया और बोला की हम तो आराम के चक्कर में काफी देर तक सो गए। अब हम घर तक आज नहीं पहुँच पाएंगे। दोनों नें कुछ देर सोचने समझने के बाद निर्णय लिया की आज की रात वह वहीँ बिताएंगे। दोनों एक पेड़ पर सुरक्षित स्थान देखकर बैठ गए, वीरान तथा अपरचित जगह होने के कारण दोनों को सोने में दिक्कत हो रही थी।
रात्रि धीरे धीरे अपनी यौवन अवस्था की तरफ बढ़ रही थी। कुछ देर बाद उसी पेड़ पर एक उल्लू आकार बैठा और वह अपनी आवाज में गाना शुरू किया। हंस और हंसनी उसकी कर्कश आवाज को न सुनने का प्रयाश करते पर नजदीक होने की वजह से कानो पर नियंत्रण न रख पाते। कुछ देर बाद हंस ने खीझते हुए कहा, “एक तो नींद नहीं आ रही है ऊपर से यह उल्लू अनावश्यक ही अपना गला फाड़ रहा है। लगता इन उल्लुओं की वजह से ही यह जंगल इतना वीरान है।”
हंस ने और न जाने क्या क्या अनाप शनाप उल्लुओं के बारे में कहा। उल्लू ऊपर बैठा हंस की बात को सुन रहा था।
सुबह हो गई थी हंस का जोड़ा अपने गंतव्य की ओर जाने की तैयारी कर रहा था।
तभी वह उल्लू उनके नजदीक आकार बैठा, और हाथ जोड़कर बोला की," बीती रात जो कुछ भी हमसे गलती हुई हो उसके लिए मैं हाथ जोड़कर क्षमा मांगता हूँ।”
हंस ने माफ़ करने के अंदाज में अपने पंख हिलाए और अपनी पत्नी को साथ लेकर उड़ने ही वाला था।
कि पीछे से आवाज आई ," भाई साहब आप मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हैं। "
हंस को झटका लगा वह रुक गया, उसने हंसनी को देखा फिर उल्लू की तरफ देखकर बोला," भाई साहब आपको गलतफहमी हुई है यह मेरी पत्नी हंसनी है।”
“नहीं नहीं भाई साहब मुझे कोई गलतफहमी नहीं हुई है, वो मेरी पत्नी है” उल्लू ने चिल्लाते हुए कहा। और फिर जोर जोर से चीखने चिल्लाने लगा।
हंस सोच रहा था की उल्लू पागल तो नहीं हो गया है जो हमारी पत्नी को अपनी पत्नी बता रहा है।
उल्लू का शोर सुनकर सभी वीरान जंगलवासी प्राणी एकत्रित होने लगे। थोड़ी देर में वहां भरी भीड़ जमा हो गयी। उल्लू हंसनी को अपनी पत्नी बता रहा था और हंस अपनी, कोई फैसला नहीं कर पा रहा था। सभी ने पंचायत बुलाकर फैसला करने की सलाह दी।
पंचायत बुलाई गई, उस वीरान जंगल के मुखिया सहित सभी पंच आ गए थे। हंस के मन में एक संतोष था की दुनिया जानती है की हंसनी हंस की ही पत्नी हो सकती है, उल्लू की नहीं।
जंगल के मुखिया ने कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया। सभी बारी बारी से एक एक पछ की दलीलें सुन रहे थे। पर मामला वहीँ का वहीँ था सुलझाने का नाम नहीं ले रहा था वहां उपस्थित सभी प्राणी यह जानते थे की हंसनी उल्लू की पत्नी नहीं है, पर कोई पर कोई कुछ बोल नहीं रहा था।
अंत में मुखिया नें पंचायत को थोड़ी देर के लिए रोकनें का आदेश दिया। मुखिया और सभी पंच अकेले में थोड़ी दूर गए, और आपस में वार्तलाप करने लगे की यदि हंस के पक्ष में फैसला सुनाते हैं, तो हंस थोड़ी देर बाद हंसनी को लेकर इस जंगल से चला जायेगा तथा हमारे पास यह बदसूरत उल्लू ही रहेगा। और अगर उल्लू को हंसनी सौंप देते है तो उल्लू सुन्दर हंसनी को साथ लेकर हमारे बीच रहेगा। सभी ने तय किया की हंसनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस झूठ बोल रहा है।
पंचायत फिर से शुरू हुई सभी पंचों की सहमति लेकर मुखिया नें अपना फैसला सुनाया की," हंसनी उल्लू की ही पत्नी है तथा हंस झूठ बोल रहा है।” मुखिया का यह फैसला सुनकर हंस के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह रोने गिडगिडाने लगा पर उसकी एक न सुनी गई, हंस मन ही मन पश्चाताप कर रहा था की वह इस वीरान जंगल में आया ही क्यों था।
पंचायत ख़त्म हो गयी थीं सभी पंच और जंगल के प्राणी जा चुके थे। हंस ने सोचा की अब रोने धोने से क्या फायदा हमें भी चलना चाहिए। हंस ने जैसे ही आगे बढ़ने के लिए कदम बढाया की तभी पीछे से फिर से रुकने के लिए उल्लू की आवाज सुनाई दी। हंस ने पीछे मुड़ते हुए कहा की," भैय्या मेरी पत्नी को अपने मुझसे छीन ही लिया है अब मुझसे और क्या चाहते हो। ”
उल्लू ने हसते हुए कहा की, " आपकी पत्नी को आपसे कोई नहीं छीन सकता है पर बीती रात आपने मुझ पर एक इल्जाम लगाया था|” की, "इस जंगल के वीरान होने का कारण मैं हूँ ” यही बात आपको समझाने के लिए मैंने ये सारा प्रपंच रचा था। ताकी आप देश दुनिया में जाकर ये न कहे कि यह जंगल उल्लुओं की वजह से वीरान हैं। बल्कि जहाँ राजा, मुखिया, पंच, सरपंच अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की खुशियों का गला घोटते है, तो वह जगह इसी तरह वीरान हो जाती है।
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मुखिया का श्वार्थ, एक प्रेरणादायक कहानी | A Motivational Story
Reviewed by Ramesh 'Manjhi'
on
1:18 am
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