कबीर दास जी की जीवनी / Biography of Kabir Das in Hindi

Biography of Kabir Das in Hindi

कबीरदास (Kabir Das) का जन्म काशी में सन 1398 (संवत् 1455 वी0 )में हुआ था। ‘कबीर पंथ’ में भी इनका आविर्भाव काल संवत् 1455 में जेष्ठ पूर्णिमा सोमवार के दिन माना जाता है। इनके जन्म स्थान के सम्बन्ध में तीन मत हैं--काशी, मगहर, आजमगढ़। अनेक प्रमाणों के आधार पर इनका जन्म काशी ही मानना उचित है। सम्बन्ध कबीर के जन्म के सम्बन्ध में निम्न पंक्तियाँ प्रसिद्ध है ---

                                चौदह सौ पचपन साल गये, चंद्रावर एक ठाट ठये।

                                जेठ सुदी बरसायत को , पूरनमासी प्रगट भये।।

                                घन गरजे दामिन दमके , बूंदें बरसें झर लाग गये।

                                लहर तालाब में कमल खिलिहैं, तहं कबीर भानु परकास भये।।

कबीर दास जी की जीवनी / Biography of Kabir Das in Hindi
कबीर दास जी की जीवनी / Biography of Kabir Das in Hindi

भक्त परम्परा में प्रसिद्ध की किसी विधवा ब्राह्मणी को स्वामी रामानन्द के आशीर्वाद से पुत्र उत्पन्न होनें पर उसने समाज के भय से काशी के समीप लहर तारा नामक तालब के पास फेंक दिया था। जहाँ से नीरू (नूरी) और नीमा नामक जुलाहा दम्पति ने उन्हें ले जाकर उनकी परवरिश की और उनका नाम कबीर रखा। इस प्रकार कबीर पर बचपन से ही हिन्दू मुस्लिम दोनों ही धर्मों के संस्कार पड़े। कबीर का विवाह लोई नामक स्त्री से हुआ जिससे इनके कमाल और कमाली नामक दो संतानें हुई। कबीरदास के गुरु स्वामी रामानन्द जी थे जिनसे गुरु मन्त्र पाकर कबीर दास संत महात्मा बनें।

कबीर दास (Kabir Das) अपनें युग के सबसे महान कवि,समाज-सुधारक तथा प्रतिभा संपन्न एवं प्रभावशाली व्यक्ति थे। वह अनेक प्रकार के विरोधी संस्कारों में पले थे। कबीर किसी भी बाह्य आडम्बर पूजा पाठ और कर्मकांड की अपेछा पवित्र, नैतिक और सादे जीवन को अधिक महत्व देते थे। सत्य, अहिंसा दया तथा संयम से से युक्त धर्म के सामान्य स्वरूप में ही विश्वास करते थे। जो भी सम्प्रदाय इन मूल्यों के विरुद्ध कहता था,उसका ये निर्ममता से खण्डन करते थे। इसी से इन्होंने अपनी रचनाओं में हिन्दू और मुसलमान दोनों के रूढ़िगत विश्वासों एवं धार्मिक कुरीतियों का विरोध किया है।

कबीर दास (Kabir Das) की मृत्यु के सम्बन्ध में भी अनेंक मत हैं, ‘कबीर पंथ’ में कबीर का मृत्युकाल सं0 1575 वि0 माघ शुक्ल पछ एकादशी,दिन बुधवार (1518 ई0)माना गया है,जो कि तर्कसंगत प्रतीत होता है। ’कबीर परचई’ के अनुसार बीस वर्ष में कबीर चेतन हुए और सौ वर्ष तक भक्ति करनें के बाद मुक्ति पाई अर्थात इन्होनें 120 वर्ष की आयु पाई थी।

                              बाल पनौ धोखा मैं गयो ,बीस बरिस तैं चेतन भयो ।

                             बरिस सऊ लगी किन्ही भगती,ता पीछै सो पायी मुकती ।।
कबीर नें कभी अपनी रचनाओं को एक कवि की भांति लिखने-लिखाने का प्रयत्न नहीं किया था। गाने वाले के मुख में पड़कर उनका रूप भी एक सा नहीं रह गया। कबीर ने स्वयं कहा है –“मसि कागद छुऔ नहीं, कलम गह्यो नहिं हाथ।” इससे यह स्पष्ट है की इन्होनें भक्ति के आवेश में जिन पदों और साखियो को गया, उन्हें इनके शिष्यों नें संग्रहीत कर लिया। उसी संग्रह का नाम ‘बीजक’ है। यह संग्रह तीन भागों में विभाजित है – साखी, सबद और रमैनी। अधिकांश ‘साखियाँ’ दोहों में लिखी गयी हैं, पर उनमें सोरठे का प्रयोग भी मिलाता है। ‘सबद’ गेय पद है और इनमें संगीतात्मकता का भाव विद्दमान है। चौपाई एवं दोहा छंद में रचित ‘रमैनी’  में कबीर के रहस्यवादी और दार्शनिक विचारों को प्रकट किया गया है।

कबीरदास जी की भाषा में पंजाबी, राजस्थानी, अवधी आदि अनेक प्रान्तों की भाषाओँ के मेलजोल की खिचड़ी मिलती है। सहज भावाभिव्यक्ति के लिए ऐसी ही लोकभाषा की आवश्यकता भी थी, इसीलिए इन्होनें साहित्य की अलंकृत भाषा को छोड़कर लोकभाषा को अपनाया। इनकी साखियों की भाषा अत्यंत सरल सरल और प्रसाद-गुण-सम्पन्न हैं। हठयोग और रहस्यवाद की विचित्र अनुभूतियों का वर्णन करते समय कबीर की भाषा में लाक्षणिकता आ गई।

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कबीर दास जी की जीवनी / Biography of Kabir Das in Hindi कबीर दास जी की जीवनी / Biography of Kabir Das in Hindi Reviewed by Ramesh 'Manjhi' on 6:22 pm Rating: 5

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